राँची। सनातनियों के बीच लोक आस्था के महापर्व छठ का बहुत ही ज्यादा महत्व है। इस महापर्व को साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार चैत्र माह में तो दूसरी बार कार्तिक माह में मनाया जाता है। बताया जाता है कि चैत्र माह में मनाए जाने वाले छठ महापर्व की महत्ता कहीं अधिक है, यह सबसे कठिन व्रत में से एक है। चार दिन में सम्पन्न होने वाला यह महापर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है। चतुर्थी तिथि को नहाय खाय, पंचमी को खड़ना, षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य दे कर महापर्व का समापन होता है। इस अनुसार इस वर्ष आज 1 अप्रेल मंगलवार को नहाय खाय के साथ इसकी शुरुआत हो रही है। आज के दिन छठव्रती चूल्हे पर आम की लकड़ी के आग पर अरवा चावल का भात, कद्दु की सब्जी व चना दाल बनाकर खातीं हैं। 2 अप्रैल बुधवार को संध्या में खरना होगा। इस दिन छठव्रती दिन भर निर्जला उपवास रहकर सूर्यास्त के बाद स्नान-ध्यान कर दूध-चावल का खीर बनाएंगी। व्रती अपने क्षेत्र व अपनी परंपरा के अनुसार कहीं चावल तो कहीं चावल और दूध से बने खीर का प्रसाद आम की लकड़ी से प्रज्वलित अग्नि पर बनेगी। इससे पूर्व अग्निदेव की पूजा की जाती है और छठी मईया का आह्वान होता है। इसी प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती का 36 घंटे का कठीन व्रत शुरु हो जाएगा। अनुष्ठान के तीसरे दिन तीन अप्रैल को छठव्रती निर्जला व्रत रखकर संध्या काल में अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य देंगे। चौथे दिन 4 अप्रैल की सुबह जलाशयों, तालाबों व नदियों में उगते सूर्य को अर्ध्य देने के बाद छठ महापर्व संपन्न हो जाएगा।
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